Wednesday, August 5, 2020

कावड़ यात्रा

भारत में सबसे अधिक प्रचलन में यहां के भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न आस्थाओं के साथ त्यौहारों का मनाना प्रचलन में आता है और खासकर जब बात करें श्रावण(सावन) माह की तो आस्था का केंद्र मुख्य रूप से श्रावण(सावन) महीना माना जाता है।
सावन किस महीने में मुख्य रूप से त्रिलोकीनाथ भगवान शिव जी की उपासना की जाती है इसी सावन के महीने में पौराणिक लोक वैदिक मान्यताओं के अनुसार गंगाजल लेकर भगवान शंकर की पत्थर की प्रतिमा पर जल अभिषेक किया जाता है जिस यात्रा को कावड़ यात्रा कहा जाता है।

कावड़ यात्रा के दौरान लाखों-करोड़ों लोग एक लोक वेद पर आधारित आस्था से जुड़कर बहुत बड़ी संख्या में हरिद्वार से जल लेकर अपने अपने निजी स्थानों पर आकर शिवजी के मंदिर में जल चढ़ा कर अपने आप को धन्य महसूस करते हैं।

कावड़ यात्रा लाभ या हानि-
यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि क्या कावड़ यात्रा करने से कोई लाभ प्राप्त होता है अथवा नहीं होता इसका निष्कर्ष हम केवल 1 तरीके से लगा सकते हैं यदि कावड़ यात्रा या इस प्रकार की किसी भी क्रिया के विषय में पवित्र चारों वेदों में या पवित्र गीता जी में कोई वर्णन है जोकि परमेश्वर के द्वारा दिया गया संपूर्ण मानव समाज को एक संविधान है जो हमें मार्गदर्शन करते हैं की भक्ति साधना अध्यात्म में तथा जीवन में किस प्रकार से करनी चाहिए इनमें यदि प्रमाण है कावड़ यात्रा का तो कावड़ यात्रा सही हैं और यदि कावड़ यात्रा के विषय में या इससे मिलती-जुलती किसी भी क्रिया के विषय में वेदों तथा गीता में कोई वर्णन नहीं है तो यह क्रिया शास्त्रविधि के विपरीत मन माना आचरण मानी जानी चाहिए।
एक विचारणीय विषय यह भी है की भगवान शिव के लोक में एक जटा कुंडली नामक एक बहुत बड़ा सरोवर है जिसमें गंगा जी को स्थान प्राप्त हुआ और वहां से अंतर्ध्यान हो कर गोमुख हिमालय से गंगा जी जल के रूप में प्रकट हो तथा हरिद्वार होते हुए तथा अन्य रास्तों से होते हुए अपने आगे का सफर पूरा किया जो गंगा जी भगवान शिव के लोक से आकर यहां प्रकट हैं तो क्या हमारा पावभर गंगाजल लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करके कोई लाभ प्राप्त हो सकता है।
श्रीमद्भागवत गीता मे लिखा हुआ है की शास्त्र विधि को त्याग कर जो मन माना आचरण अर्थात मनमाने तरीके से क्रिया पूजा साधना की जाती है जो लोग यह करते हैं उन्हें ना तो कोई लाभ मिलता है ना ही उनकी गति होती है ना ही कोई सिद्धि प्राप्त होती है अर्थात बिल्कुल व्यर्थ जी हां यही श्रीमद्भागवत गीता जी के अंदर लिखा हुआ है जो स्पष्ट तौर पर बताता है कि यदि कोई भी क्रिया साधना वर्तमान समय में प्रचलित है किसी भी धर्म में है और उसको करने के बाद कोई लाभ नहीं मिलता या कोई दुखद हादसे हो जाते हैं या कोई परेशानी आती है उचित लाभ नहीं मिल पाता है तो उसका सिर्फ और सिर्फ एक यह कारण होता है कि वह शास्त्रों के अनुसार नहीं है।
ऐसे में हमें चाहिए कि उस क्रिया साधना को बेशक वह कितनी पौराणिक समय से चलती आ रही हो तुरंत त्याग देना चाहिए और शास्त्र अनुकूल भक्ति करनी चाहिए।

कावड़ यात्रा के दौरान दुखद घटनाएं-
यदि हम कुछ समय पहले की कावड़ यात्रा को देखें तो इस दौरान बड़े बड़े हादसे प्रत्येक वर्ष होते हैं जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है सड़क हादसों में अन्य किसी दूसरे कारण से कावड़ यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है विचारणीय विषय यह है कि कि देवों के देव महादेव भगवान शंकर यदि इस कावड़ यात्रा या इसके दौरान की जाने वाली किसी भी क्रिया साधना से प्रसन्न होते तो क्या वे इन हादसों को इन दुखद घटनाओं को टाल नहीं सकते थे वह तो सम्रत हैं त्रिलोकीनाथ हैं तीन लोक के स्वामी हैं डाल सकते थे परंतु ऐसा नहीं हुआ यहां पर सबसे बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है क्या यह क्रिया शास्त्रों में वर्णित विधि के बिल्कुल विपरीत है जिसकी वजह से किसी को कोई उचित लाभ नहीं मिलता।
बड़े ही दुख के साथ यह भी कहना पड़ता है कि कुछ नकली धर्मगुरु जो अपनी महिमा बनाने के लिए तरह तरह के पाखंड क्रिया करते हैं और उन से आकर्षित होकर भोले भाले श्रद्धालु यह नहीं देखते कि हमारे वेदों जीता में क्या वर्णित विधि बताई है परमेश्वर को पाने तथा उनसे लाभ लेने के लिए और भोले वाले श्रद्धालु उनके पीछे एक दिखावे की ओर आकर्षित होकर उनके साथ लग जाते हैं और वह भगवान शंकर के नाम से स्वयं तो नशा करते हैं चिलम पीना हुक्का पीना तमाखू भांग पीना तथा और अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन करते हैं तथा भोले का प्रसाद बता कर भोले भाले श्रद्धालुओं को भी इस बुरी लत में डाल देते हैं जो कि किसी भी शास्त्र में प्रमाण नहीं है कि भगवान शंकर भांग पीते थे या अन्य कोई ऐसी क्रिया करते थे जो नशीली वस्तुओं का सेवन करने से होती हो यह एक बहुत बड़ा शराब कहेंगे हम युवा पीढ़ी के लिए इससे हमें बचने की आवश्यकता है।
वास्तविक शास्त्र अनुकूल भक्ति-
वर्तमान समय में चल रही शास्त्र विरुद्ध साधना , क्रियाNएं प्रत्येक धर्म के अंदर चरम सीमा पर है उन सभी क्रियाओं से बचने के लिए एक ऐसा मार्ग चाहिए जो शास्त्र विधि के अनुसार हमें भक्ति करने के लिए प्राप्त हो 
जिससे वेदों गीता आदि के अनुसार विधिवत परमेश्वर की भक्ति को अपनाकर मानव सुखी हो सके।
आज वर्तमान समय में शिक्षा का लाभ उठाते हुए प्रत्येक मानव का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपने धार्मिक आध्यात्मिक शास्त्रों चाहे वह किसी भी धर्म में क्यों ना हो का अध्ययन करना चाहिए तथा उसके अंदर बताई हुई भक्ति क्रिया को विधिवत बताए हुए तरीके के अनुसार करना चाहिए।

सत्य साधना बताने वालेमार्गदर्शक-

श्रीमद भगवत गीता जी अध्याय 4 श्लोक 34 ने बताया है की पूर्ण परमेश्वर की भक्ति तथा उसे पाने का मार्ग जानने के लिए किसी तत्वदर्शी संत की खोज करनी चाहिए उन्हें दंडवत प्रणाम करके उनसे सरलता पूर्व प्रश्न करने पर वह तत्वदर्शी संत साधक को परमात्मा तत्व का उपदेश करते हैं।

पवित्र कुरान शरीफ की सूरत फुरकान 25 आयत 52 से 59 में यह स्पष्ट बताया है कि वह अल्लाह जिसने सारी सृष्टि को रचा जिसने सारी दुनिया को बनाया सब कुछ उसके बीच में रहने वालों को बनाया उस अल्लाह के बारे में किसी बाखबर(तत्वदर्शी सन्त) से पूछो वह उस अल्लाह के विषय में सही सही जानकारी बताएंगे।

यहां पर विचारणीय विषय यह है कि श्रीमद भगवत गीता जी का ज्ञान देने वाले प्रभु तथा पवित्र कुरान शरीफ का ज्ञान देने वाला अल्लाह अपने से किसी अन्य परमेश्वर किसी अन्य बड़े अल्लाह के पास जाने को कहता है और उसकी जानकारी किसी तत्वदर्शी संत अथवा बाखबर जो इल्म से जानता हो उसकी शरण में जाने को कहा है वह तत्वदर्शी संत बताएंगे कि वह पूर्ण परमात्मा कौन है वह सबसे बड़ा अल्लाह कौन है।

तत्वदर्शी संत/ बाख़बर कौन है-
आपको यह जानकर बड़ी खुशी होगी की वर्तमान समय में वह तत्वदर्शी संत वह बाख़बर भारतवर्ष में ही हैं और उनका नाम है जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जो अपने अद्वितीय ज्ञान जिनका प्रमाण पवित्र वेदों में गीता जी में पवित्र कुरान शरीफ में पवित्र बाइबल में तथा पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में मिलता है और वे पूर्णब्रह्म परमात्मा वास्तविक अल्लाह वास्तविक राम कबीर परमेश्वर की भक्ति की वास्तव की विधि बताते हैं जिससे मनुष्य को अपने प्रारब्ध के सभी दुखों और आने वाले सभी पापों और दुखों से बचाकर पूर्ण मोक्ष प्राप्त करवाने की शास्त्र अनुकूल भक्ति प्रदान करते हैं।
संत रामपाल जी महाराज संपूर्ण धर्मों की पवित्र पुस्तकों से यह प्रमाण बताते हैं कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा है कबीर साहेब भी अल्लाह है कबीर साहिब भी ईश्वर हैं वहीं सर्व रचनाकार हैं जिनकी भक्ति को त्याग कर यह मानव इस लोक में जन्म मृत्यु के चक्कर में फंसा हुआ है और दुख पर दुख उठाता है संत रामपाल जी महाराज के द्वारा बताई गई भक्ति परमेश्वर कबीर जी की करने से मनुष्य के सभी दुख समाप्त हो जाते हैं और श्रीमद भगवत गीता जी में बताया है कि है अर्जुन यदि बुढापे और मृत्यु से बचना है तो उस पूर्ण परमेश्वर की भक्ति करो उसके विषय में कोई तत्वदर्शी संत में बताएंगे वही पूर्ण परमेश्वर की भक्ति तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के द्वारा करवाई जा रही है जिसे संपूर्ण मानव समाज स्वीकार करके अपना मानव जन्म सफल बनाएं यहां पर भी सुखी रहें और शरीर त्यागने के बाद परमसुख परम शांति दायक स्थान सतलोक को प्राप्त करें।
संत रामपाल जी महाराज के अद्वितीय आध्यात्मिक सत्संग प्रवचन ओं का प्रसारण अनेकों धार्मिक चैनलों पर होता है जिसमें से रात्रि 7:30 बजे से साधना चैनल पर संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन प्रसारित होते हैं अवश्य सुने और अपना मानव जीवन धन्य बनाएं।      
                          धन्यवाद



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